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ईश्वरवाद बनाम अनीश्वरवाद
Dr. Sanjay Kumar Tiwari
Year of Publish -2011
Month - February
ISBN : - 978-1-365-10874-7
       
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Preface

दार्शनिक चिन्तन के प्रारम्भ से ही ईश्वर का अस्तित्व विवाद का एक विषय रहा है। एक ओर हम यह देखते हैं कि विभिन्न युक्तियों के द्वारा ईश्वर के अस्तित्व को प्रमाणित करने की चेष्टा की गयी है, तो दूसरी ओर हम यह पाते हैं कि उन युक्तियों का खण्डन करके या तो ईश्वर को आस्था का विषय बना दिया गया अथवा अनेक अन्य युक्तियों के द्वारा ईश्वर के अस्तित्व का ही खण्डन किया गया। विचारणीय प्रश्न यह है कि यदि आस्था तथा धर्म सम्बन्धी आवश्यकताओं को छोड़ दें तो शुद्ध दार्शनिक दृष्टि से मनुष्य के लिए ईश्वर के होने अथवा न होने का क्या अर्थ है ? इतना तो सुनिश्चित है कि ईश्वर के अस्तित्व को प्रमाणित अथवा अप्रमाणित करना मात्र बौद्धिक व्यायाम नहीं है। ईश्वर में विश्वास करने वाले अथवा अविश्वास करने वाले दोनों प्रकार के दार्शनिक यह मानते हैं कि ईश्वर के अस्तित्व के साथ अथवा ईश्वर के अस्तित्व के बिना जीवन जीने का एक महत्वपूर्ण अर्थ होता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में उन्हीं कतिपय अर्थों का निरूपण और मूल्यांकन करने का प्रयत्न किया गया है।



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